Oxford Hindi Word of the Year

Hindi Word of the Year 2020

ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा चयनित वर्ष का हिन्दी शब्द एक ऐसा शब्द या उक्ति है जो बीते हुए वर्ष की प्रकृति, मिजाज़, माहौल और मानसिकता को व्यक्त कर सकता है, और इसे इसके स्थायी सांस्कृतिक महत्त्व के कारण चुना गया है।

 

ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा वर्ष 2020 का चयनित हिन्दी शब्द है ‘आत्मनिर्भरता’।

वर्ष २०२० कई मायनों में २१वीं सदी का उल्लेखनीय वर्ष रहा है। वैश्विक महामारी का साक्षी, इस वर्ष में बहुत बदलाव आए - लोगों की ज़िंदगी में, उनकी सोच में, उनके तौर तरीक़ों में। इस वर्ष में आए इन बदलावों को अपनाना हमेशा आसान नहीं रहा है।
प्रत्येक भारतीय की अदम्य मानवीय भावना ने हमें इन अच्छे बुरे परिवर्तनों के बावजूद एक उम्मीद की किरण प्रदान करी।

 

वर्ष २०२० के कई महीने लॉकडाउन में बीते। इन महीनों में आवागमन और अन्य कई गतिविधियों पर प्रतिबंध रहा। इन कठिनतम परिस्थितियों के बीच, भारतीयों ने यह ठाना की वे आत्मनिर्भर होंगे और इस महामारी पर विजयी होंगे। हमने पाया की हमारे जीवन में आशा की किरण हम स्वयं बन सकते हैं।

 

मई 2020 की शुरुआत में राष्ट्र के नाम एक संबोधन में, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भारत के कोविड -19 रिकवरी पैकेज की घोषणा करी। उस सम्बोधन में उन्होंने देशवासियों को यह संदेश दिया की इस महामारी के खतरों से बचाव के लिए हमें आत्मनिर्भर होना है - राष्ट्रीय स्तर पर, आर्थिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर भी।

 

प्रधान मंत्री ने इस बारे में विस्तार से बताया कि, “आत्मनिर्भर भारत का मतलब सिर्फ आयात कम करना ही नहीं, हमारी क्षमता, हमारी क्रिएटिविटी, हमारी स्किल्स को बढ़ाना भी है।”

 

हमने प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद आत्मनिर्भर / आत्मनिर्भरता के उपयोग में भारी वृद्धि देखी, इसकी अभिव्यक्ति सार्वजनिक शब्दकोष में एक वाक्यांश और अवधारणा के रूप में बढ़ी।

आत्मनिर्भरता - ये वाक्यांश या अवधारणा नई नहीं है। गाँधीजी ने भी आत्मनिर्भर गाँव अर्थव्यवस्था की बात करी थी। एक ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ गाँवों की स्वतंत्र आर्थिक इकाइयाँ होंगी। भारत के हालिया इतिहास में, वर्ष १९६५ में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने नेतृत्व में देश को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करा और उस समय की कठिनतम परिस्थितियों से बाहर निकाला।
शास्त्री जी आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए प्रेरक शक्ति थे। उनकी नीतियों के तहत भारत में हरित क्रांति और श्वेत क्रांति लाई गईं। इन नीतियों ने हमें १९६५ के युद्ध और भोजन की कमी से आयी परेशानियों का सामना करने में मदद करी।

 

व्यक्तिगत स्तर पर, वर्ष २०२० में हम सब को पहले से कहीं अधिक आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता थी। लम्बे समय तक परिवार और प्रियजनों से दूर रहने पर मजबूर, यह कठिन समय और मुश्किल परिस्थितियाँ हमारे जीवन में आयीं और हमने बख़ूबी इनका आत्मनिर्भर बनकर सामना किया।
होम स्कूलिंग से लेकर रिमोट वर्किंग तक, मनोरंजन के लिए अपने साधन स्वयं बनाने से लेकर घर में रहकर व्यायाम के तरीके खोजने तक, खुद के लिए खाना बनाने से लेकर खुद की देखभाल करने तक - आत्मनिर्भरता के अनेक रूप थे। यह ही नहीं, मानसिक रूप से ख़ुद को स्वस्थ्य रखने के लिए बुज़ुर्गों और बच्चों सभी ने विभिन्न तकनीकी उपकरणों को अपनाया, नई तकनीकियों को सीखा और उसकी सहायता ली।

 

इस दौरान कई ऐसे उदाहरण सामने आए जो मानवता के लिए मिसाल बन गए। आम आदमी द्वारा जरूरतमंदों को भोजन बाँटना, घर से दूर अन्य शहर में फंसे हुए मजदूरों को उनके घर तक पहुँचाना, नौकरी ढूँढने वाले से नौकरी देने वाला बनना - इन सभी ने हमें आशा की किरण प्रदान करी। कारीगर, मजदूर, और अन्य श्रमिक जो महामारी में बेरोजगार हो गए, उनके लिए आजीविका के साधन बनाने में बहुत से लोग आगे आए।

 

आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता का सबसे बड़ा नमूना है भारत में कोविड -19 वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन। २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड के दौरान, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने आत्मानिभर भारत अभियान पर प्रकाश डाला और राजपथ पर अपनी झांकी में कोविड -19 वैक्सीन की विकास प्रक्रिया को प्रदर्शित किया।
वर्ष २०२० एक अद्भुत वर्ष रहा। वैश्विक संकट के बीच, यह वर्ष साक्षी है मानवीय भावना के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का। इस अभूतपूर्व वर्ष में भारत के निरंतर प्रयास से हम वैक्सीन के निर्माता बने और साथ ही पड़ोसी देशों में भी वैक्सीन को उपलब्ध करवाया। भारत ने सबके लिए आत्मनिर्भरता का उदाहरण निर्धारित किया।

 

कहते हैं, "परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है"। वर्ष २०२० में आत्मानिर्भर होकर ज़िंदगी के परिवर्तनों को अपनाना और आपदा को अवसर में बदलना ही सही मायने में व्यक्तिगत विकास का प्रतीक है!

 

कृतिका अग्रवाल

 

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वर्ष के हिन्दी शब्द के चुनाव के लिए हमने हिंदी भाषा के विशेषज्ञों के अपने परामर्शी मंडल के साथ जनता द्वारा भेजी गयी प्रविष्टियों की समीक्षा की, उनका विश्लेषण कर उन पर विचार-विमर्श किया और फिर एकमत निर्णय लिया।

 

कृतिका अग्रवाल एक भारतीय एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड और ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं। विभिन्न भाषाओं और साथ ही उनकी लिपियों में उनकी गहरी रुचि है (ख़ासतौर पर वे भाषाएँ जो कम बोली जाती हैं)। नई दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय की छात्रा रह चुकी, उन्होंने तमिल, गुजराती और संस्कृत उस दौरान सीखीं।वे हंगेरीयन, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, प्राचीन ब्राह्मी लिपि और अंग्रेज़ी भी जानती हैं। उन्हें तमिल, संस्कृत और हंगेरीयन के लिए प्रतिष्ठित छात्रवृत्तियाँ भी मिली हैं।

 

डॉ पूनम निगम सहाय दिल्ली में जन्मी, शिक्षित-दीक्षित (प्रेजेंटेशन कान्वेंट, मिरांडा हाउस) एक बहुआयामी व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं . वे एक द्विभाषी (हिंदी एवं अंग्रेजी) कवि, लेखक, संपादक, आलोचक, समीक्षक एवं फ्रीलांसर हैं . वे अंग्रेजी साहित्य एवं भाषा में एसोसिएट प्रोफेसर हैं रांची विश्वविद्यालय मे और अंग्रेजी/हिंदी भाषा, आधुनिक नाटक एवं साहित्य में अनुसन्धानरत हैं. उन्होंने देश-विदेश के कई सम्मेलनों में शोध-पत्र प्रस्तुत/प्रकाशित किये हैं।

 

इमोजेन फोक्सेल ऑक्सफोर्ड लैंग्वेजेज़ के लिए एक्ज़क्टिव एडीटर हैं जो अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं पर काम करती हैं। वे हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के लिए कई परियोजनाओं में सक्रिय रही हैं, खासतौर पर ऑक्सफोर्ड की अग्रेज़ी-हिंदी द्विभाषी शब्दकोष में बड़े संशोधनों में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है।

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